श्रीमद्भगवद्गीता

Bhagwat Geeta in Hindi by Vedicsastra

हिंदू धर्म में सबसे पवित्र धर्मग्रंथ श्रीमद् भगवद् गीता एक ऐसा महान ग्रन्थ है जिसकी लगभग दुनिया की अलग – अलग भाषाओं में अनुवाद हो चूका है। और इस ग्रन्थ को मन से तल्लीन होकर पड़ने वाला संसार के सभी प्रकार के उतार चढ़ाव से मुक्त हो जाता है। श्रीमद् भगवद् गीता में जीवन का सार छुपा हुआ है। वास्तव में इस महान ग्रंथ को वाणी द्वारा वर्णन करने के लिए किसी के पास भी सामर्थ्य नहीं हैं। क्योंकि यह संपूर्ण ज्ञान के साथ साथ रहस्यमय ग्रंथ है। इसकी संस्कृत इतनी सरल और सुंदर है कि थोड़ा सा अभ्यास करने से यह आसानी से समज आ जाएगी। लेकिन इसका संपूर्ण ज्ञान का अंत आजीवन अभ्यास करने से भी नहीं आता। क्योंकि जितना आप इसे अभ्यास करेंगे उतने नये नये भाव आपके मन में उत्पन्न होते रहते हैं। जिस कारण यह सदैव नवीन बना रहता है। यदि कोई गीता का सारांश यथार्थ रूप से समझने में सक्षम हो जाता है तो वह परम् सत्य का अनुभव के संसार के अभी प्रकार के दुखों से मुक्त हो जाता है। 

हज़ारों वर्ष पहले मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ तब अर्जुन का मन युद्ध में अपने सगे संबंधियों को देख कर विचलित होने लगा अर्जुन हिंसा के बारे में नैतिक दुविधा और निराशा से भर जाता है। तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को नन्दिघोष नामक रथ पर ही जीवन का सत्य बताते हुए गीता का उपदेश दिया था। श्रीमद् भगवद् गीता का उपदेश अर्जुन के अलावा संजय ने सुना और धृतराष्ट्र को भी सुनाया। श्रीमद् भगवद् गीता में कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। गीता में श्रीकृष्ण द्वारा 574 श्लोक बोले गए हे, अर्जुन द्वारा 85 श्लोक बोले गए है, संजय द्वारा 40 श्लोक बोले गए और धृतराष्ट्र द्वार 1 श्लोक बोला गया है। श्रीमद् भगवद् गीता का ज्ञान भगवान ने सबसे पहले सूर्यदेव को सुनाया था। मनुष्य के मन में हमेशा यह सवाल घुमाता रहता है कि मैं कौन हूँ? इस संसार में आने की वजह क्या है? क्या इस शरीर के साथ मेरा आरंभ और अंत है? मृत्यु के बाद मेरा क्या होगा? जीवन में जीतने भी प्रश्नों होते है ऊन सारे प्रश्नों के उतर भगवान श्री कृष्ण ने दिये है। हमारे शरीर में जीवात्मा की मौजूदगी के कारण 36 तत्व होते है। जीवात्मा ही शरीर का मालिक होता है। जीवात्मा जब शरीर को त्यागता है तो शरीर की मृत्यु हो जाती है और जीवात्मा कर्मी के अधीन हो जाता है और इन्हीं कर्मों के आधार पर जीवात्मा अलग अलग योगियों में घूमता रहता है।

 श्रीमद् भगवद् गीता में भगवान के प्रभाव, गुण का वर्णन किया ही वेसा किसी भी ग्रंथ में मिलना कठिन है। श्रीमद् भगवद् गीता में भगवान ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सभी धर्म, ज्ञान, बुद्धि, और सभी मुझसे ही उत्पन्न हुए है। जो मनुष्य इन सभी वस्तुओं और विकारो को त्याग कर मेरी शरण में जाता है अर्थात ज्ञान, धर्म, सन्यास या किसी भी अनुष्ठान या पूजा की कोई आवश्यकता नहीं होती है, वह पूर्ण रूप से अपने उद्गम स्थल यानि की परम-आत्मा में विलीन हो जाता है और इस संसार के बंधन से मुक्त हो जाता है।

गीता के अन्य नाम :-

अष्टावक्र गीता, ज्ञानेश्वरी गीता, अवधूत गीता, कपिल गीता, श्रीराम गीता, श्रुति गीता, उद्धव गीता, वैष्णव गीता, कृषि गीता, गुरु गीता

श्रीमद्भगवद्गीता का पहला अध्याय – अर्जुनविषादयोग

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