हनुमान चालीसा में शिव जी के रुद्रावतार, प्रभु श्री राम जी के अनन्य (महान) भक्त पवन पुत्र हनुमान जी की सुंदर स्तुति की गई है। हनुमान चालीसा हनुमान जी के भक्तों द्वारा उनको प्रसन्न करने के लिए की जाने वाली प्रार्थना है जिसमें परिचय के 2 दोहों को छोड़कर 40 छन्द हैं। जिस कारण इस प्रार्थना का नाम हनुमान चालीसा पड़ा। हनुमान चालीसा में हनुमान जी की सुंदर स्तुति की भावपूर्ण वन्दना के साथ प्रभु श्री राम जी की जीवन शैली को भी सरल शब्दों में उतारा गया है। हनुमान जी को शिव जी का रुद्रावतार कहने साथ बजरंगबली, पवन पुत्र, महावीर,मारुति, केसरी नन्दन, मारुतीनन्दन अनेकों नाम से जाना जाता है। काहा जाता है कि प्रभु श्री राम जी ने हनुमान जी को अजर अमर का वरदान दिया था। वह हर काल, हर समय जीवित और सभी से अजय रहेंगे। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का ध्यान और जाप करने से सभी प्रकार के भय, क्लेश मिट जाते है। मन में श्रेष्ठ ज्ञान की जागृति होती है। लगभग सभी हिन्दुओं को यह कण्ठस्थ होती है।
हनुमान चालीसा कि वैदिक और शस्त्रोक्त पूजन विधि
प्रात:काल नित्य क्रिया से निवृत्त हो कर लाल वस्त्र धारण कर लें, तत्पश्चात् कूशासन या ऊनी वस्त्र पर बैठ कर अपने मन को एकाग्र कर लें। बजरंगबली कि मूर्ति पर अक्षत, चन्दन, पुष्प, रोली, अगर, तगर से पूजन कर शास्त्रोक्त रूप से दिये को प्रज्वलित करें और लाल रंग की बूंदी या लड्डू का प्रसाद कर आवाहन कर भोग लगायें। तत्पश्चात् श्लोक पढें:-
अतुलितबलधामं हेमसैलाभदेहं, दनुज-वनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं, रधुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ।।
अन्तत: पत्रम्, पुष्पम् , ताम्बूलम् अर्पण कर ध्यान करें। मन शांत कर हनुमान चालीसा का पाठ करें, पाठ करने के बाद रुद्राक्ष या तुलसी की माला ले कर ‘ ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्’ का नित्य प्रतिदिन जाप करें।
हनुमान चालीसा
दोहा
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
मैं अपने मन दर्पण को श्री गुरू जी के चरण-धुल-से-पवित्र कर श्रीरधुवीर भगवान् के यश का गुणगान करता हुँ, जिससे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
हे पवन पुत्र! मैं आपका स्मरण करता हूँ। आप जानते ही हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सद् बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दु:खों व दोषों का नाश कीजिए।
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
पवनपुत्र वीर हनुमान जी ! आपकी जय हो। आप तो ज्ञान व गुणों के समुद्र हैं। आपकी कीर्ति तो तीनों लोकों में फैली है।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनिपुत्र पवनसुत नामा।।
हे पवनपुत्र अंजनीनन्दन ! श्री राम दूत ! आपके समान दूसरा कोई बलवान नहीं है।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
हे महावीर बजरंगबली ! आपमें विशेष पराक्रम है। आप अपने भक्तों की दुर्बुद्धि एवं बुरे विचारों को समाप्त करके उनके हृदय में अच्छे ज्ञान एवं विचारों को प्रेरित करने में सहायक है।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
आपका रंग कंचन जैसा है तथा आप सुन्दर वस्त्रों से तथा कानों में कुण्डल और घुँगराले बालों से शोभायमान हैं।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।।
आपके हाथों में वज्र और ध्वजा विराजमान हैं तथा मूँज की जनेऊ आपके कन्धे पर शोबायामान है।
शंकरसुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जगबंदन।।
आप शंकर जी के अवतार हैं, हे केसरी नन्दन ! आपके तेज और प्रताप की सारा संसार बन्दना करता है।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
आप प्रकाण्ड विधानिधान हैं, गुणवान् और अत्यन्त कार्यकुशल होकर श्री राम के काम करने के लिए उत्सुक रहते हैं।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
श्री राम का गुणगान सुनने में आप आनन्द रस लेते हैं। भगवान् श्री राम, माता सीता व लक्ष्मण आपके में निवास करते हैं।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
आपने अति लघु रुप धारण कर माता सीता को दिखाया तथा बयानों रुप धारण कर रावण की लंका को जलाया।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज सँवारे।।
आपने अति विशाल रुप धारण कर के राक्षसों का संहार किया। भगवान् श्रीराम के कार्यों में सहयोग देने वाले भी तो आप ही है।
लाय सँजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
संजीवनी-बूटी लाकर आपने लक्ष्मण को जीवन दान दिलाया, अत: श्रीरघुवीर ने प्रसन्न होकर आपको हृदय से लगा लिया।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
श्रीरामचंद्र जी ने आपकी बड़ी प्रशंसा की और कहा कि जितना मुझे भरत प्रिय है उतना ही तुम भी मुझे प्रिय हो। अर्थात् तुम मेरे भरत के समान प्रिय भाई हो।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया कि तुम्हारा यश हजार-मुखों वाले शेषनागजी भी गाते हैं।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
श्रीसनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार आदि मुनि। ब्रह्मा, नारद, सरस्वती आदि देवता, शेषनागजी सब आपका गुणगान करते हैं।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते।।
यम, कुबेर आदि तथा सब दिशाओं के रक्षक, कवि, विद्वान कोई भी आपके यश का पूर्णतया वर्णन नहीं कर सकते।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
आप ही ने सुग्रीव जी को प्रभु श्री राम से मिलवाया। उनकी कृपा से उन्हें खोया हुआ राज्य वापस मिला।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
आपकी मन्त्रणा को विभीषण जी ने माना, जिसके फलस्वरूप वे लंका के राजा बने, इसको सारा जगत जानता है।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
जो सूर्य हज़ारों योजन की दूरी हैं, जहाँ पर पहुँचने में हज़ारों युग लगें, उस सूर्य को आपने मीठा फल समझकर निगल लिया।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं।।
आपने प्रभु श्री राम जी की अंगूठी मुँह में रख कर समुद्र को पार किया, परंतु आपके लिये इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
संसार में जितने भी कठिन से कठिन कार्य हैं, वे सभी आपकी कृप्या से सहज और सुलभ हो जाते हैं।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
आप श्री रामचन्द्र जी के महल के द्वार के रखवाले हैं,आपकी आज्ञा के बिना उस द्वार में कोई प्रवेश नहीं कर सकता।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपकी शरण में आने वाला व्यक्ति को सभी सुख लाभ हो जाते हैं और आप जिसकी रक्षा करते हैं, उसे किसी प्रकार का भय नहीं रहता।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक ते काँपै।।
आप अपने तेज यानी वेग को स्वयं आप ही सँभार सकते हैं, दूसरा कोई नहीं। आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते हैं।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
हे पवन पुत्र ! आपका ‘महावीर’ नाम सुनते ही भूत-प्रेत-पिशाच आदि भाग खड़े होते हैं।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
हे वीर हनुमान जी ! आपके नाम का निरन्तर जाप करने से सब रोग नष्ट हो जाते हैं और सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
जो व्यक्ति मन कर्म वचन से आपका ध्यान करते हैं, उनके सब सकटों को आप दुर कर देते हैं।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।।
तपस्वी राजा श्री रामचंद्र जी सबसे श्रेष्ठ हैं, उनके सब कार्यों को आपने सहज में के दिया।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
हे हनुमान जी ! आपके सामने जो कोई अपना मनोरथ निवेदन करता है, उसे तुरंत अमित जीवन फल प्राप्त हो जाता है।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है प्रसिद्ध जगत उजियारा।।
आपका यश चरोंयुगों में विद्यमान है। सम्पूर्णसंसार में आपकी कीर्ति सभी जगह पर प्रकाशमान है। सारा संसार आपका उपासक है।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
हे श्रीरामचन्द्र के प्यारे हनुमान जी ! आप साधु सन्तों तथा सज्जनों अर्थात धर्म के रक्षक हैं दुष्टजनों का नाश करते हैं।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
हे हनुमंत लालजी, आपको माता श्रीजानकी जी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिसमें आप किसी को भी “आठोसिद्धियाँ” और नवें निधियाँ” दे सकते हैं।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
आप तो सदा प्रभु राम की शरण में रहते है, तभी तो आप रोग रहित हैं, आपके पास राम नाम ही सबसे बड़ी औषधि है।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
आपके भजन करने वाला भक्त को भगवान श्री राम जी के दर्शन होते हैं और उनके जन्म जन्मांतर के दुःख दूर हो जाते हैं।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई।।
आपके जाप के प्रभाव से प्राणी अन्त समय में श्री रघुनाथ पूरी को जाते हैं। यदि धरती पर जन्म लेते हैं तो श्री हरि भक्त कहलाते हैं।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
हे हनुमान जी ! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते हैं, फिर किसी देवता की पूजा करने की आवश्यकता नहीं रहती।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
वीर हनुमान का स्मरण करने वाले के सभी संकट और विघ्न दूर हो जाते हैं।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
हे वीर हनुमान जी ! आपकी सदा जय हो, जय हो ! आप मुझपर श्रीगुरुजी के समान कृपा कीजिए ताकि मैं सदा आपकी उपासना करता रहूँ।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
हनुमान चालीसा का सौ बार पाट करने से हनुमान जी की कृपा से वह बंदी जीवन यानी कारागार से छूट कर महा सुखी पाता है।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
भगवान शंकर जी ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया इसलिए वे साक्षी हैं कि जो इसे पड़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
हे नाथ हनुमान जी ! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है। इसलिए आप उसके हृदय में निवास कीजिए।
दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
हे पवन पुत्र ! आप सभी संकटों के हारने वाले हैं, आप मंगल मूरत वाले हैं। मेरी प्रार्थना है कि आप श्री राम, श्रीजानकी एवं लक्ष्मण जी सहित सदा मेरे हृदय में निवास करें।